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· दिल्ली के लाल किला में मोहन भागवत करेंगे फिल्म निर्देशक, लेखक और प्रोड्यूर इकबाल दुर्रानी द्वारा उर्दू और हिन्दी में अनुदित सामवेद का। किताब विमोचन के पूर्व इकबाल दुर्रानी से पत्रकार आलोक नदंन शर्मा की एक खास बातचीत
आलोक नंदन शर्मा, मुंबई। प्रसिद्ध फिल्म लेखक, निर्देशक और प्रोड्यूसर इकबाल दुर्रानी ने लगभग छह वर्ष की कठिन मेहनत के बाद सामवेद का उर्दू व हिन्दी में चित्रमय अनुवाद किया है। 17 मार्च 2023 को अनुदित दोनों पुस्तकों का विमोचन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत स्वयं लाल किला में करने जा रहे हैं। इस विमोचन कार्यक्रम में कई केंद्रीय मंत्री भी शिरकत करने वाले हैं।
गौरतलब है कि शाहरुख खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन की कैरियर की शुरुआत इकबाल दुर्रानी द्वारा लिखित फिल्म से ही हुई थी। इन अभिनेताओं को उनके जीवन का पहला फिल्मी ब्रेक इकबाल दुर्रानी द्वारा लिखित फिल्म में ही मिला था। फिल्म “दिल आसना है” में शाहरुख खान, फिल्म “सौगंध” में अक्षय कुमार और फिल्म “फूल और कांटे” में अजय देवगन को पहली बार फिल्मों में काम करने का अवसर मिला था और इन फिल्मों को इकबाल दुर्रानी ने ही लिखा था।
इसके अलावा उन्होंने दो दर्जन से भी अधिक हिट फिल्में लिखी हैं जिनमें “काल चक्र”, “खोज”, “मजबूर”, “शानदार” “कातिल” “मि. बॉन्ड”, “नसीबवाला”, “मुकद्दर का बादशाह”, “जख्मी औरत”, “यमराज”, “बेनाम बादशाह”, “इंसानियत के देवता” आदि शामिल हैं। इकबाल दुर्रानी ने भगवान बिरसा मुंडा पर भी एक किताब लिखी है जिसका नाम है “गांधी से पहले गांधी.” सामवेद के उर्दू और हिन्दी संस्करण के विमोचन के पहले फिल्म लेखक, प्रोड्यूसर और निर्देशक इकबाल दुर्रानी से पत्रकार आलोक नंदन शर्मा ने विस्तृत बातचीत की है। पेश है बातचीत का प्रमुख अंश-
प्रश्न: वेदों और पुराणों, उपनिषदों में दारा शिकोह गहरी रूची लेते थे, और अब आप लेते दिख रहे हैं। संस्कृत से उर्दू अनुवाद के लिए आपने सामवेद का ही चयन क्यों किया ?
उत्तर: दारा शिकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद करवाया था। खुद उसने अनुवाद नहीं किया था। वेदों पर भी वह काम करवाना चाहता था, लेकिन उसके पहले ही औरंगजेब की तलवार चमक उठी और उसकी गर्दन कट गई। मैंने सामवेद का उर्दू और हिन्दी में इसलिए अनुवाद किया कि यह मेरे दिल के बहुत करीब है। यह बहुत ही नर्म है। यह फिलॉसफी की किताब नहीं है। यह प्रार्थना है, बंदे की सर्वशक्तिमान से। सामवेद में 1000 श्लोक हैं। इनमें से ज्यादातर ऋग्वेद और यजुर्वेद से लिये गये हैं। इसे पढ़ने का मतलब है कि आप एक साथ ऋग्वेद और यजुर्वेद भी पढ़ लेते हैं। मैंने सिर्फ सामवेद का हिन्दी और उर्दू में अनुवाद ही नहीं किया है, बल्कि पूरी पुस्तक को चित्र से सजाया भी है। पढ़ने के साथ पाठकों को चित्र के जरिये भी इसके मर्म को समझने का अवसर प्राप्त होगा। इसके महत्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि खुद भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मैं वेदों में सामवेद हूं।
प्रश्न: ऐसे दौर में जब लोग सभ्यता, विज्ञान और कला को एक अलग पोस्ट मॉर्डन नजरिये से देख रहे हैं ऐसे दौर में आपकी नजर में सामवेद की क्या प्रासांगिकता है ?
उत्तर: जहां तक उपयोगिता की बात है तो जब अंधेरा ज्यादा होता है तभी चिराग जलाने की ख्वाहिश होती है। थोड़ी रोशनी बढ़े। मैं चाहता हूं कि मुसलमान भी इसे पढ़े और जाने कि और धर्मों में क्या कुछ लिखा गया है। यहां तो हम बिना दूसरे के धर्मं को जाने ही नफरत करने लगते हैं। यदि हम एक दूसरे के धर्म को जानेंगे और समझेंगे तो निसंदेह नफरत की गुंजाईश नहीं रह जाएगी। दुनिया के तमाम धर्म ग्रंथ जोड़ने का काम करता है, सामवेद भी जोड़ता है।
प्रश्न- अनुवाद के दौरान सामवेद में सबसे अधिक आपको किस चीज ने प्रभावित किया, जिसका असर ताउम्र आप पर बना रहेगा?
उत्तर : इसकी विनम्रता।
प्रश्न: सामवेद के ईश्वर और कुरान के अल्लाह में कोई भेद है ?
उत्तर: भेद मूल में नहीं होता। सभी एक ही बात कहते हैं। भेद शाखाओं में होता है। परमात्मा एक है, निरंतर है, शाश्वत है। उसमें कहीं कोई भेद नहीं है।
प्रश्न: अब जब आप सामवेद का उर्दू में अनुवाद कर चुके हैं, निश्चततौर से लोग आपसे अन्य वेदों के साथ-साथ उपनिषदों के उर्दू अनुवाद की भी उम्मीद करेंगे। सामवेद के बाद आपका अगला पड़ाव क्या होगा ?
उत्तर : अभी मेरा एक मात्र उद्देश्य है सामवेद को जन जन तक पहुंचना। इस पर मैं एपिसोड बनाउंगा, इसे घर घर तक पहुंचाऊंगा। मैं चाहूंगा कि यह लोगों को मोबाइल पर देखने को मिले, लोग इसके बारे में जाने। इसमें क्या है।
प्रश्न- सामवेद का उर्दू और हिन्दी में अनुवाद करने में कितना समय लगा ?
उत्तर : अनुवाद करने में तकरीबन चार वर्ष लग गये और डिजाइनिंग करने में ढेर वर्ष। इसे चित्रमय बनाने के लिए अतिरिक्त काम करना है।
प्रश्न: इस काम को करने की प्रेरणा आपको कैसे मिली?
उत्तर: मुझे लगता है कि कुदरत इस काम के लिए मुझे बचपन से ही तैयार कर रहा था। मेरे दादा जी संस्कृत के शिक्षक थे। वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाया करते थे। लोग उन्हें पंडित जी कहा करते थे। मैं जब भी उनके साथ कहीं जाता था तो लोग यही कहते थे कि पंडित जी का पोता आ गया। इस तरह से बचपन से मेरे अंदर धार्मिक कट्टरता को जगह लेने का अवसर नहीं मिला और संस्कृत में मेरी रूची भी बढ़ती गयी। मेरी शादी भी एक हिन्दू लड़की से ही हुई। इस तरह मुझे ऐसा परिवेश मिलता चला गया कि अचेतन रूप से मैं इस काम के लिए बहुत पहले से तैयार होता रहा।