आलोक नंदन शर्मा, मुबई। मध्यम वर्गीय किरदारों के जरिये भ्रष्टाचार पर सबसे तीखा व्यंग्य करते हुए दर्शकों को गुदगुदाने वाले अभिनेता के तौर पर जसपाल भट्टी को लोग आज भी याद करते हैं। उनके चुटीले संवाद जिसकी अदायगी वह सहजता से करते थे लोगों को हंसाते भी थे और झकझोरते भी थे। 80 और 90 के दशक में जब दूरदर्शन मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम हुआ करता था, जसपाल भट्टी ने “प्लॉप शो” और “उल्टा पुल्टा” जैसे कॉमेडी के शो के जरिये दर्शकों को खूब गुदगुदाया और उनके दिलों में अपने लिए एक खास जगह भी बनाया। अपने शो में भ्रष्टाचारी नेताओं सहित समाज के लगभग हर वर्ग के लोगों करारा प्रहारा करते थे। चाहे चोर हो या फिर पीएचडी कराने के नाम पर अपने छात्रों को शोषण करना वाले प्रोफेसर किसी को उन्होंने नहीं छोड़ा।
जसपाल भट्टी का जन्म 3मार्च 1955 को अमृतसर में हुआ। जसपाल भट्टी ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की उपाधि ली। अपने कॉलेज के दिनों में ही वह अपने नुक्कड़ नाटक नॉनसेंस क्लब से मशहूर हो गए थे। उनके अधिकतर नाटकों में भ्रष्टाचार और नेताओं का बहुत ही मनोरम अंदाज़ में मज़ाक उड़ाया गया, जिसको लोगों ने हाथों हाथ लिया। उनके लोकप्रिय होने की वजह थी मध्यम वर्ग के रोज़मर्रा के मुद्दों को दिलचस्प अंदाज़ में उठाना।
उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले अखबर दि ट्रिब्यून में एक कार्टूनिस्ट के तौर पर की थी। ताउम्र चीजों का देखने का उनका नजरिया एक कार्टूनिस्ट वाला ही रहा। जिंदगी के हर रंग में वह मजे लेते थे। गंभीर रहना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था। टेलीविजन के लिए उन्होंने “माहौल ठीक है” बनाया था। इसमें उन्होंने पंजाब पुलिस पर करारा व्यंग्य किया था, जिसे दर्शकों को खूब पसंद किया था।
उन्होंने ‘फना‘ फ़िल्म में एक गार्ड जाली गुड सिंह की भूमिका अदा की थी। उन्होंने पंजाबी की हास्य फ़िल्म ‘जीजाजी‘ में भी अभिनय किया था। भट्टी और उनकी पत्नी सविता ने 2008 में रियलिटी शो ‘नच बलिये‘ में भी भाग लिया था और दोनों में अपने नृत्य एवं हास्य के ज़रिये दर्शकों का खूब मनोरंजन किया था। बाद में उन्होंने, पॉवर कट, मौसम, हम तुम शबाना, चक दे फट्टे, एक द पॉवर ऑफ़ लव, फ़ना सहित दर्जनों फिल्मों में अभिनय किया।
जसपाल भट्टी के चुटीले हास्य की खूबी थी अपने आप पर हँसने और मज़ाक उड़ाने की कला अपनी वेबसाइट पर वह अपना परिचय कुछ इस अंदाज़ में देते थे, ‘मैं सनडे ट्रिब्यून में नियमित कॉलम लिखता हूँ जिसकी वजह से ही उसकी बिक्री घटती जा रही है’ अपने जीवन परिचय में वह अपने सारे स्कूलों के नाम बताया करते थे जहां उन्होंने पढ़ाई की थी। इसके बाद उनकी टिप्पणी होती थी कि इससे यह हरगिज़ मत समझिएगा कि मैं बहुत पढ़ा लिखा हूँ। वास्तव में मेरे सारे अध्यापक मुझे अपना शागिर्द कहते हुए शरमाते हैं।
जालंधर में शाहकोट के पास 25 अक्टूबर 2012 को तड़के क़रीब तीन बजे हुए एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई थी, मह महज वह 57 साल के थे।