मुंबई। फिल्म ‘आदिपुरुष’ की टीम की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही है। फिल्म की चौतरफा आलोचना के बाद भले ही उनलोगों ने इस फिल्म से आपत्तिजनक डॉयलॉग हटा दिये हैं लेकिन इससे भी बात बनती नजर नहीं आ रही है। इलाहाबाद हाईकोर्टी की लखनऊ पीठ ने फिल्म के लेखर मनोज मुंतशिर कोर्ट के सामने सफाई पेश करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है। हनुमान जी के लिए लिखे गये उनके तेल बत्ती वाले संवाद से नाराज दर्शक मनोज मुंतशिर को सोशल मीडिया पर लगातार ट्रोल कर रहे हैं। अब कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किये जाने के बाद दर्शक उनसे सोशल मीडिया पर अपने खास अंदाज में पूछ रहे हैं कि अब तेरा क्या होगा मुंतशिर, तूने तो हनुमान जी से पंगा ले लिया?
एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न सिर्फ फिल्म निर्माताओं को फटकार लगाई है बल्कि उन्हें कोर्ट में हाजिर होकर अपनी बात रखने को भी कहा है। इतना ही नहीं इलाहाबाद कोर्ट ने फिल्म सेंसर बोर्ड की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाया है। कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सेंसर बोर्ड के पूछा है कि क्या सेंसर बोर्ड बता सकता है कि यह कैसे हुआ? क्या उसने अपनी जिम्मेदारी निभाई है? यह एक गंभीर मामला है।
जानकारी के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फिल्म निर्माताओं को फटकार लगाते हुए कहा है कि लोग घर से निकलने के पहले रामचरित मानस पढ़ते हैं। यह फिल्म धर्मग्रंथ पर बनाई गयी है जिसकी लोग पूजा करते हैं। क्या फिल्म निर्माता लोगों को बेवकूफ समझते हैं ? फिल्म में रामजी है, लंका है, सीता है, हनुमान है, अशोक वाटिका है, और डिसक्लेमर लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि यह फिल्म रामायण पर आधारित नहीं है।
कोर्ट ने फिल्म के लेखक मनोज मुंतशिर से भी जवाब तलब किया है। अपना जवाब देने के लिए मनोज मुंतशिर को एक सप्ताह का वक्त दिया गया है।
गौरतलब है कि मनोज मुंतशिर प्रारंभ से इस फिल्म को लेकर लोगों को गुमराह करते आ रहे हैं। जब फिल्म रिलीज भी नहीं हुई था तो उन्होंने दावा किया था कि यह फिल्म वालिमिकी जी की रामायण पर आधारित है। फिल्म के रिलीज के बाद जब दर्शकों ने हनुमान जी के लिए उनके लिखे हुए संवादों पर जबरदस्त तरीके से आपत्ति जताना शुरु किया तो उन्होंने कहना शुरु किया यह फिल्म रामायण पर आधारित नहीं है, बल्कि नये जमाने के नजरिये से इसे बनाया गया है, रामायण से सिर्फ प्रेरणा ली गई है। हनुमाने जी के लिए लिखे गये उनके आपत्तिजनक संवादों पर अपनी सफाई देते हुए उन्होंने कहना शुरु किया कि ये उनके संवाद नहीं है, बल्कि बड़े-बड़े कथावाचक रामकथा सुनाने के दौरान इसी तरह से संवादों का इस्तेमाल किया करते हैं। उन्होंने ये संवाद हू-बहू कथावाचकों से ले लिया है। इन संवादों को बनाने में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
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