पटना। अमृत युवा कलोत्सव 2023-2024 के दूसरे दिन कार्यक्रम के पहले सत्र में नाट्य लेखन कार्यशाला का आयोजन सुबह 11:00 बजे से शाम 05 बजे तक किलकारी बाल भवन में किया गया । नाट्य लेखन कार्यशाला में देश के प्रसिद्ध नाट्य विशेषज्ञ देवाशीष मजूमदार व चर्चित निर्देशक परवेज अख्तर द्वारा बच्चों को प्रशिक्षित किया गया जिसमे प्रदेश के नाट्य कला में रुचि रखने वाले बच्चों से नाट्य लेखन के गुर सीखें।
साथ ही कार्यक्रम के पहले सत्र में ही प्रेमचंद रंगशाला में सुबह 11 बजे से ही कला समीक्षा कार्यशाला आयोजित की गई। कला समीक्षा को आशीष मिश्रा, विनोद अनुपम,संजय उपाध्याय,विनय कुमार व नंदलाल नायक ने संबोधित किया।
समीक्षा कार्यशाला को संबोधित करते हुए देश के प्रसिद्ध निर्देशक संजय उपाध्याय ने कहा नाटक में संगीत,लाइट,कॉस्ट्यूम ये तमाम चीज़े एक चरित्र के रूप में आते हैं। डिक्शन,बॉडी लैंग्वेज की समझ बहुत जरूरी है। बेहतर नाटक समीक्षा के लिए अधिक से अधिक नाटक देखें एक नाटक देखना 10 नाटक पढ़ने के बराबर है। उन्होंने आगे कहा आप जीवन में कुछ भी करें लेकिन कला की समझ होनी बहुत जरूरी है क्योंकि कला की समझ रखने वाले लोग एक बेहतर इंसान बनते हैं।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नंदलाल नायक ने अपने संघर्ष से सफलता की कहानी बताई और ये भी बताया कि कैसे हम अपनी क्षेत्रीय कलाओं का अध्ययन कर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर सकते हैं। कला समीक्षक का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि हम टाइगर तो बचा रहे हैं लेकिन संस्कृति के टाइगर हमारे बुद्धिमान कला समीक्षक विलुप्त होते जा रहे हैं,उन्हें बचाने की खूब जरूरत है। बिहार प्रशासनिक सेवा में वरिष्ठ अधिकारी विनय कुमार ने कहा कला की दुनिया मे पिछले 2 दशकों में खूब बदलाव आया है। यहाँ काफी प्रयोग व एक्पेरिमेंट हुए भी हैं। अधिक से अधिक युवा कला समीक्षक सामने आने से हमारे समाज,कला संस्कृति का विकास होगा। एक कला समीक्षक को उनके द्वारा लिखे जाने वाले विषय की समझदारी होनी चाहिए। हमे अच्छे आर्टवर्क,नाटक व फिल्में देखनी चाहिए और कला की बारीकियों को समझने का प्रयास करनी चाहिए।
राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता विनोद अनुपम के भी अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा एक समीक्षक जब समिक्षा करता है तो कार्यक्रम खत्म होने के बाद इसकी जिम्मेदारी शुरू होती है। कार्यक्रम के अच्छे पहलुओं को पाठकों दर्शको तक पहुंचाना समीक्षक का कार्य होता है। कला समीक्षक को संयम के साथ कहानी से बाहर निकल पड़ता है। उन्हें लाइट,डायलॉग,वस्त्र इत्यादि का भी बखूबी ध्यान रखना होता है। फ़िल्म व किताब के रिव्यू में तो दोबारा देखने का विकल्प होता है लेकिन नाटक के विषय मे ये बाते लागू नही होती एक ही मौका मिलता है। एक उम्दा समीक्षक को तकनीकी समझ होनी भी आवश्यक है तभी तमाम चीजो को जस्टिफाई कर पायेंगे।
संगीत नाटक अकादमी के जेनेरल काउंसलर व वरिष्ठ पत्रकार आशीष मिश्रा ने समीक्षा कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि अगर आप पत्रकार बनते हैं तो आपको दूसरे द्वारा कही गयी बाते,दूसरी घटनाएं इत्यादि लिखने पड़ेंगे लेकिन अगर आप कला समीक्षक बनते हैं आर्ट पे लिखते हैं तो आपको अपना नजरिया रोज लिखने का अवसर मिलेगा और ये आपको अंतराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर कर देगा। वर्तमान में डांस पर लिखने वाला इस देश मे कोई नही है जिसे डांस की समझ हो। कला पर लिखने हेतु कला की समझ बहुत जरती है। लिखना निरंतर जारी रखने वाली एक प्रक्रिया है जिसे अनवरत अभ्यास व अध्ययन की आवश्यकता है।
26 जुलाई को कार्यक्रम के दूसरे सत्र में संध्या 05 बजे प्रेमचंद रंगशाला परिसर में बिहार के ही सुरेश कुमार हज्जु द्वारा निर्देशित नुक्कड़ नाटक पालकी पालना की प्रस्तुति हुई जिसने दर्शको का खूब मनोरंजन किया।
उसके बाद मुख्य कार्यक्रम की शुरुआत की हुई। पहली प्रस्तुति में मध्यप्रदेश के निर्देशक पूजा केवट द्वारा निर्देशित नाटक पांचाली की प्रस्तुति हुई। पांचाली में पांच अलग अलग कविताओं का नाट्य रूपांतरण किया गया। मंच पर आए कलाकारों ने द्रौपदी के जीवन को जीवंत कर दिया। पांचाली के जरिये द्रौपती से लेकर निर्भया व लक्ष्मी जैसे दुष्कर्म पीड़ित युवतियों व महिलाओं की व्यथा को बखूबी दिखाया गया।
उसके बाद तमिलनाडु के जे बी किर्तना और समूह द्वारा कर्नाटक गायन की प्रस्तुति हुई। उसके बाद बिहार की चर्चित लोक नृत्य जट जटिन की प्रस्तुति बिहार के ही लोक कलाकार प्रवीण कुमार द्वारा कीया गया। जट जटिन में विवाहित दंपती के बीच के कोमल व मीठी नोक झोंक को अनोखे डंग से प्रस्तुत किया गया। जट जटिन को देख प्रेक्षागृह तालियों की ध्वनि से गूंज उठा।
कर्नाटक के प्रसिद्ध डांस ग्रुप मिराकल ओक व्हील्स द्वारा प्रयोगात्मक नृत्य की प्रस्तुति हुई। इसके हर प्रस्तुति में गरिमा, शक्ति, आत्मविश्वास, संतुलन और रचनात्मकता की झलक दिखी। उसके बाद बिहार के ही चर्चित निर्देशक चंदन कुमार वत्स द्वारा निर्देशित नाटक मृत्यु के पीछे का मंचन भी किया गया। एक से एक कार्यक्रमो का आनंद लेते हुए दर्शक अंत तक दर्शक डंटे रहे।