क्रिएटिव फ्रीडम’ के नाम पर कुछ भी स्वीकार्य नहीं

आलोक नंदन शर्मा। ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ की सीमा क्या है? ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ की सीमा है भी या नहीं ? क्या ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ के नाम पर किसी को किसी भी आर्ट फार्म में कुछ भी परोसने की इजाजत दी जा सकती है, वह भी मानव व उसकी सभ्यता और संस्कृति का निर्माण करने वाली महाभारत और रामायण जैसी कालजयी रचनाओं के केंद्रीय किरदारों को लेकर?

तकरीबन एक दशक पहले एकता कपूर ने ‘कहानी महाभारत की’ नाम से एक धारावाहिक बनाने की कोशिश की थी, जिसे दर्शकों की तरफ से मिल रही तीखी प्रतिक्रिया के बाद महज कुछेक एपिसोड के बाद ही बंद करने पर मजबूर होना पड़ा था। इस धारावाहिक मे एकता कपूर ने ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ का हवाला देते हुए भगवान श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव को फ्रेंच कट दाढ़ी, द्रौपदी की नाभी में रिंग का इस्तेमाल, अर्जुन के लिए सिक्स पैक की अनिवार्यता व शरीर पर टैटू जैसे एक्सपेरिमेंट्स करने लगी थी। बड़े गर्व के साथ वह तर्क भी देती थी कि जेनरेशन बदल गया है और बदलते हुए जेनरेशन के मिजाज को देखते हुए महाभारत के किरदारों के वेशभूषा, पहनावा और हावभाव को भी बदलना होगा। इस धारावाहिक को देखने के बाद इस नये जेनरशन के दिमाग में महाभारत के पात्रों को लेकर एक नई अवधारणा का जन्म होगा।दर्शकों ने ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ के नाम पर एकता कपूर के इस प्रयोग को बुरी तरह से नकार दिया था, जिसका नतीजा यह हुआ था कि एक बड़ी बजट वाली यह धारावाहिक तो डूबी ही साथ साथ ही वह चैनल भी डूब गया जिस पर इसका प्रसारण किया जा रहा था। दर्शकों का संदेश स्पष्ट था कि ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ के नाम पर पौराणिक कथाओं को लेकर ‘कुछ भी’ नहीं चलेगा।

दर्शकों को पौराणिक कथाओं और उनके पात्रों के साथ छेड़छाड़ कतई पसंद नहीं है। फिल्म ‘आदिपुरुष’ को लेकर जिस तरह से दर्शक रियेक्ट कर रहे है उससे ओम राउत को शायद इस बाद का अब अहसास हो रहा होगा, और वह निश्चतौर पर मनोज मुंतिशर को भी कोस रहे होंगे जिन्होंने फिल्म आदिपुरुष के पात्रों पर एक थर्ड ग्रेड के मुंबई फिल्म वाले संवाद चिपका दिये। ऊपर से तूर्रा यह कि उन्होंने यह सब जानबूझ कर किया है ताकि पौराणिक किरदारों को आज के लोगों की आम बोल चाल की भाषा से लैस किया जा सके।

भगवान श्रीमचंद्र और उनकी कथा की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी हर रोज तीन हजार से भी ज्यादा किसी न किसी रूप में उनकी कथा, उनसे संबंधित गाने, नाटक आदि का मंचन टीवी रेडियो सहित गावों और छोटे बड़े शहरों में होता ही रहता है। रामकथा पीढ़ी दर पीढी लोगों के चरित्र का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अब जो पौराणिक कथा और पौराणिक किरदार एक सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक व्यवस्था की आधारशिला हैं और जिनके जरिए सदियों से लोगों के चरित्र निर्माण की प्रक्रिया चल रही है उनके साथ किसी भी स्तर पर छेड़छाड़ क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर भला कैसे स्वीकार्य हो सकता है?

भगवान राम अपनी सौम्यता के लिए जाने जाते हैं। उनके बाल रूप से भक्ति की एक धारा फूट भी है तो किशोरा और युवा अवस्था से जनमानस को आज्ञाकारिता के पालन की सीख मिलती है। ऋषि-मुनियों के लिए यज्ञ की रक्षा करते हुए असुरों का वध भी करते हैं, तो भी सौम्यता का दामन नहीं छोड़ते। अपनी मूंछ के साथ आदि पुरुष के राघव प्रचंड नजर आते हैं। भगवान श्री रामचंद्र जी के सम्यक मुस्कान और हाव-भाव को भी पूरी तरह से तब्दील कर दिया गया है। लक्ष्मण और हनुमान के स्थापित किरदार के साथ भी छेड़छाड़ की गई है। रावण अपनी सवारी के लिए चमगादड़ का इस्तेमाल करता है। अब ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ नाम पर सिल्वर स्क्रीन पर इनसे छेड़छाड़ करने का जोखिम वही ले सकता है जिसे या तो अपनी अपनी क्षमता में पुरा यकीन हो या फिर वह किसी भ्रम का शिकार होकर दर्शकों को वेवकूफ समझता हो। इस फिल्म को देखने के बाद दर्शकों की पहली प्रतिक्रिया जिस तरह से आ रही है वह वाकई में

ओम राउत के लिए परेशान करने वाले हैं। दर्शक अपनी प्रतिक्रिया में यहां तक कह रहे हैं कि जो प्रमोशन के लिए हॉल के अंदर हनुमान जी के नाम पर एक खाली सीट छोड़ी गई है उस पर यदि हनुमान जी बैठते तो सबसे पहले अपनी गधा से उनकी खबर लेते जो इस फिल्म के निर्माण में सक्रिय रहे हैं। आखिर बड़ी बजट की इस फिल्म का औचित्य क्या है? यदि इंटरटेनमेंट ही करना था, और नई तकनीकी का ही इस्तेमाल करना था, तो फिर कोई और स्टोरी या कोई और सब्जेक्ट पर काम कर लेते, भगवान श्री रामचंद्र जी के किरदार के साथ इस तरह का प्रयोग करने से बाज आना चाहिए था। यहां तक कि इस फिल्म का टाइटल आदिपुरुष भी जस्टिफाई नहीं कर रहा है।

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