मुद्दत से वकील पीसी सोलंकी के किरदार के लिए भटक रही थी मनोज बाजपेयी की रूह

आलोक नंदन शर्मा। एक सटीक कहनी का चयन, कसी हुई स्क्रीप्ट, सधा हुआ निर्देशन, कुशल संपादन और अपने को पूरी तरह से अभिनय कला के अभ्यास में तपा चुके अभिनेता का संयोग एक साथ होता है तभी ‘एक ही बंदा काफी है’ जैसी फिल्म बनती है। पूरी फिल्म एक कोर्ट रूम ड्रामा है, जिसमें अभिनेता मनोज बाजपेयी ने वकील पीसी सोलंकी का किरदार निभाया है, जो एक नाबालिग लड़की नूह सिंह के साथ एक धार्मिक गुरु द्वारा किए गए दुष्कर्म के खिलाफ कोर्ट में खड़ा होता है। एक ओर धार्मिक गुरू को बचाने के लिए महंगे और प्रभावशाली वकीलों की पूरी फौज खड़ी है तो दूसरी तरफ इस पूरी फौज से मुकाबला करने के लिए अकेले ‘एक ही बंदा काफी है’ वाले अंदाज में एडवोकेट पीसी सोलंकी डटा हुआ है।

वकील पीसी सोलंकी के किरादर के रूप में मनोज बाजपेयी का अभिनय दर्शकों को रोमांचित करता है, कोर्ट कार्रवाई की छोटी छोटी प्रक्रियाओं को बारीकी से निभाते हुए जिस तरह से वह अपने आप को पूरी तरह से केस पर फोकस रखते हुए अपने हाव भाव को संचालित करते हुए नजर आते हैं उसे देखते हुए यही लगता है कि मनोज बाजपेयी के अंदर के अदाकार की रूह भी मुद्दत से वकील पीसी सोलंकी के किरदार के लिए भटक रही थी। वकील पीसी सोलंकी के किरदार में मनोज बाजपेयी अभिनय की दुनिया में खुद के लिए भी एक नई लकीर खींचते प्रतीत हो रहे हैं। मनोज बाजपेयी के अंदर के अदाकार का पूर्ण इस्तेमाल करने के लिए हर फ्रेम और हर हर शॉट में निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की ने कड़ी मेहनत की है।

यदि सही मायने में देखा जाये तो यह फिल्म 1986 आयी बासु चटर्जी की फिल्म ‘एक रूका हुआ फैसला’ की शैली की कोर्ट रूम ड्रामा है। फिल्म निर्देशक बी आर चोपड़ा भी अपनी अधिकतर फिल्मों में कोर्ट रूम का ड्रामा क्रिएट करते थे, चाहे फिल्म ‘वक्त’ हो या फिर ‘इंसाफ का तराजू’। इन फिल्मों का कोर्ट रूम ड्रामा मुंबई की फार्मूला फिल्मों से इतर रहा है। आम मुंबइया फिल्मों में कोर्ट के अंदर दलील को जोरदार बनाने के लिए चीख चिल्लाहट का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता रहा है, जबकि फिल्म ‘एक ही बंदा काफी है’ में कोर्ट के अंदर चीख चिल्लाहट नहीं है।सब कुछ बिल्कुल वैसा ही जैसे सामान्यतौर में एक आम कोर्ट में होता है।

वकील पीसी सोलंकी के किरादर में मनोज बाजपेयी खुद स्कूटर से चल कर कोर्ट आते हैं। कोर्ट के अंदर दुष्कर्म के आरोपी धर्मगुरू को बचाने और दोषी साबित करने के लिए दोनों पक्षों की ओर से तार्किक तरीके से विधिवत जिरह होती है। मनोज बाजपेयी द्वारा दिया गया क्लोजिंग स्पीच बहुत ही उम्दा बन पड़ा है। धर्मगुरू के अपराध को एक संगीन अपराध साबित करने के लिए जिस तरह से साधु के वेश में रावण द्वारा मां सीता के हरण का जिक्र किया गया है वह वाकई में काबिले तारीफ है। इस सीन में संवाद अदायगी के दौरान मनोज बाजपेयी भी अपनी पूरी रवानगी में नजर आते हैं।

दुष्कर्म की शिकार नाबालिग लड़की नूह सिंह की भूमिका को अद्रिजा सिन्हा ने भी बखूबी निभाया है। अन्य कलाकारों में विपिन शर्मा, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, इखलाख अहमद खान, बालाजी लक्ष्मीनरसिम्हन, अविजित लाहिड़ी और विवेक टंडन प्रमुख है।

‘एक ही बंदा काफी है’ जैसे बेहतरीन फिल्म बनाने के लिए इसके प्रोड्यूसर विनोद भानुशाली खासतौर से बधाई के पात्र हैं। दीपक किंगरानी द्वारा लिखित इस कहानी पर उन्होंने न सिर्फ यकीन किया बल्कि फिल्म निर्माण के लिए उन्होंने एक बेहतर टीम भी बनाई और साथ ही टीम के हर सदस्य को यह अहसास भी दिलाने में कामयाब रहे हैं कि वह अलहदा फिल्म बना रहे हैं। उन्होंने कहानी और अपनी टीम पर पूरी यकीन किया और एक अच्छी फिल्म बनाने में कामयाब हुए।

यह फिल्म एक स्पष्ट संदेश भी देती है, उनलोगों के खिलाफ जो धर्मगुरू का लबादा ओढ़कर राग-द्वेष के अधीन होकर अपनी काम पिपाषाओं को तृप्त करने में लगे हुए हैं। ऐसे लोग सही मायने में सामान्य अपराधियों से कई गुना ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि ये सुसंगठित है, और उन्हें पूर्ण विश्वास है कि कानून के हाथ उनतक कभी नहीं पहुंच सकते। यह फिल्म भोले भाले लोगों को सावधन करती है जो किसी धर्मगुरू की आट में बैठे हुए अपराधी पर यकीन करके अपने बच्चों को शिक्षा दीक्षा के नाम पर उनके हवाले कर देते हैं और फिर वे अपने आश्रम को चारागाह समझ कर बच्चों का शिकार करने लगते हैं।

जो फिल्म के छात्र हैं और फिल्म की दुनिया में ही अपना कैरियर बनाना चाहते हैं उन्हें तो यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए ताकि कहानी चयन के चयन से लेकर उसकी स्क्रीप्टिंग और निर्देशन के साथ साथ अभिनय की बारिकियों को सही तरीके से समझ सके। साथ ही उन छात्रों को भी यह फिल्म निश्चितौर से देखना चाहिए जो कानून की पढ़ाई कर रहे हैं या फिर किसी कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं ताकि वे समझ सके कि किसी कंप्लिकेटेड केस कोर्ट रूम में कैसे प्रजेंट किया जाता है, कैसे पौराणिक कथाओं का हवाला देकर अपनी दलील को प्रभावी बनाया जाता है और कैसे दिग्गज वकीलों के खिलाफ भी कमर कस करके तब तक लड़ा जाता है जब तक कि इंसाफ का पलड़ा उसकी ओर न झूक जाये।

एक बेहतर फिल्म बनाने के लिए ‘एक ही बंदा काफी है’ की पूरी टीम बधाई की पात्र है।

यह फिल्म 23 मई को ओटीटी प्लेटफॉर्म जी 5 पर रिलीज हो रही है।

क्यों देखे फिल्म : मनोज बाजपेयी के शानदार अभिनय के साथ साथ एक शानदार कहानी, बेहतर स्क्रीप्ट और निर्देशन के लिए।