मुंबई। फिल्म अभिनेता वाजपेयी के खाते में एक से एक कई बेहतरीन फिल्मे हैं। दिल्ली में रंगमंच की दुनिया से लेकर रुपहले पर्दे तक का उनका सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है। वैसें उन्हें शेखर कपूर की अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फिल्म “बैंडिट क्वीन” में भी काम करने का मौका मिला था लेकिन उनकी पहचान निर्देशक रामगोपाल वर्मा की फिल्म “सत्या” से हुई थी। इस फिल्म में उन्हें भीखू म्हात्रे नाम के एक गैंगेस्टर की भूमिका निभाई थी। कहा जाता है कि शुरु में इस फिल्म उनका रोल छोटा था लेकिन उनके परफॉरमेंस को देखकर रामगोपाल वर्मा ने उनका रोल बढ़ा दिया था।
इस फिल्म में मुख्य अपराधी सत्या की भूमिका जेडी चक्रवर्ती ने निभाई थी, लेकिन फिल्म की सफलता का पूरा क्रेडिट मनोज वाजपेयी ले गये थे। लेकिन इस फिल्म की सफलता के बाद मनोज वाजपेयी की मुश्किलें बढ़ गयी थी। उनके फाकाकशी के दिन फिर से शुरु हो गये थे। ऐसा नहीं था कि उन्हें फिल्में नहीं मिल रही थी। फिल्में मिल रही थी लेकिन सभी फिल्मों में उन्हें खलनायक की भूमिका ही मिल रही थी, और वह खुद को खलनायक के रूप में स्थापित करना नहीं चाहते थे। हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार को दिये गये साक्षात्कार में मनोज वाजपेयी ने बताया है कि सत्या के बाद उनके पास फिल्मों की लाइन लग गई थी लेकिन सभी ऑफर खलनायक की भूमिका के लिए मिल रहे थे। उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें खलनायक का किरदार नहीं निभाना है। सत्या के बाद वह लगभग आठ महीने तक बैठे रहें, और इसके साथ ही उनकी आर्थिक मुश्किलें भी बढ़ती चली गई। लेकिन उन्होंने जो तय कर लिया था उससे पीछे नहीं हटे। बाद में उनके खाते में विविधापूर्ण भूमिका वाली फिल्में आने लगी। ‘शूल’, ‘रोड’, ‘स्पेशल 26’, ‘नाम शबाना’, ‘तेवर’, ‘बागी 2’, ‘सोनचिरैया’, ‘साइलेंस’ “वीरजारा” “फरेब” “इंतकाम” “1971”, “स्वामी” “गैंग ऑफ वासेपुर”जैसी कई फिल्मों में मनोज वाजपेयी ने अपने अभियन की लोहा मनवाया।