हिन्दींफिल्मों से क्यों गुम हो रहे होली के गीत?

मुबई। यदि फिछले दो या तीन दशक के भारतीय सिनेमा पर नजर डाली जाये तो स्पष्ट पता चलता है कि फिल्मों से होली के गीत लगभग गुम हो गये हैं। अभी भी छोटे बड़े शहरों में होली के अवसर पर फिल्म “सिलसिला” का होली गीत “रंग बरसे, भीगे चुनरिया रंग बरसे” और फिल्म “शोले” का होली गीत “होली में दिल खिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं” ही सुनने को मिलते हैं। हाल के समय में फिल्म “जवानी दिवानी” का एक होली गीत“बलम पिचकारी, जो तूने ऐसी मारी, सीधी सदी लड़की शराबी हो गई” सुनने को मिला है। इन तीन गीतों को यदि छोड़ दिया जाये तो कहा जा सकता है कि  भारतीय सिनेमा में होली गीतों काम होना ही लगभग  बंद हो गया है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि भारतीय फिल्मों से होली के गीत क्यों गुम हो रहे हैं?

इस संबंध में एक अंग्रेजी अखबार द्वारा पूछे गये सवाल के जवाब में मशहूर फिल्म निर्देशक सुभाष घई कहते हैं कि सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है। अब सिनेमा में होली और दीवाली के त्योहार दिखाई नहीं देते हैं। पहले त्योहारों का मनाना एक सामुहिक प्रक्रिया हुआ करती थी। लेकिन अब वह बात नहीं है। पहले लोग गणेश चतुर्थी, होली या फिर दीवाली एक साथ मिलकर मनाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। समय के साथ सबकुछ बदल जाता है। सिनेमा भी बदल चुका है, रीति रिवाज भी बदल चुके हैं। भारत में आज भी त्योहार मनाये जाते हैं लेकिन सिर्फ छोटे शहरों में। बड़ों शहरों में सिर्फ पार्टियों का आयोजन होता है या फिर सॉफ्ट रंग से होली खेलते हैं।

इस संबंध में पूछे गये सवाल के जवाब में फिल्म निर्देशक राकेश रोशन कहते हैं कि नये जेनेरेशन की दिलचस्पी त्योहारों में नही रही। वे इन सब चीजों में यकीन नहीं करते हैं। वे पतंग नहीं उड़ाते हैं, होली नहीं खेलते हैं दीवाली नहीं मनाते हैं। वे या तो फोन से चिपके रहते हैं या फिर इंटरनेट से। जब ये त्योहार उनकी संस्कृति में ही शामिल नहीं है तो फिर इनको फिल्मों में क्योंकर शामिल किया जाएगा ?  पहले सिनेमा में हमलोग रोमांटिक गीतों को किसी शानदार लोकेशन पर शूट  करते थे अब तो बैकग्राउंड गीत से काम चल जाता है।

संगीतकार विशाल-शेखर भी यही बात कहते हैं। उनके मुताबिक फिल्म और उसका स्टोरी लाइन हमेशा वर्तमान समाज को प्रदर्शित करता है। गीत-संगीत को भी उसी के अनुसार ढाला जाता है। आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां सिनेमा में कहानी को मजबूती के साथ कहने पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, काल्पनिक गीतों पर नहीं।