डॉ. इकबाल दुर्रानी के हिन्दी और उर्दू सामवेद का विमोचन क्यों किया आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने

आलोक नंदन शर्मा। मुंबई। राष्ट्रीय स्वंय संघ के संघसरचालक मोहन भागवत ने फिल्म लेखक, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और फिलॉसफर इकबाल दुर्रानी द्वारा उर्दू और हिन्दी में अनुदित चित्रमय पुस्तक सामवेद का विमोचन दिल्ली के लाल किला मैदान में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में किया।

कार्यक्रम की शुरुआत सामवेद पर बनाई गयी एक एनिमेशन फिल्म के प्रदर्शन से की गई है। इस एनिमेशन फिल्म के जरिये सामवेद के महत्व पर प्रकाश डाला गया। इसमें बताया गया कि कैसे सामवेद हर परिस्थिति में व्यक्ति को संतुलन के साथ जीवन जीने की कला सिखता है। बुद्धिमान पुरुषों को यह और भी बुद्धिमान बनाता है।

इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए आरएसस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मैं वेदों का कोई ज्ञाता नहीं हूं। लेकिन जब डॉ. इकबाल दुर्रानी मेरे पास सामवेद के हिन्दी और उर्दू संस्करण का विमोचन का प्रस्ताव लेकर आये, और जिस कदर कहा, जिस भाव से कहा उसे देखते हुए मैं इनकार नहीं कर सका।

उन्होंने कहा कि वेद का मतलब ही होता है ज्ञान, यानि जिसे जानना है। और ज्ञान दो प्रकार का होता है, एक बाहर का ज्ञान और एक अंदर का ज्ञान। हमारे यहां इन दोनों के बिना ज्ञान पूरा नहीं होता। ज्ञान ही सामवेद है। वेदों का सही अर्थ पाने के लिए अनुभूति चाहिए। भारतीय संगीत का उद्गम सामवेद में है। स्वर के बारे में उसमें बहुत ही बारीकी से बताया गया है। सात स्वर का मूल भी सामवेद ही है। भारतीय संगीत और दुनियाभर के सात स्वर के उद्गम इसमें है। संगीत के रस से भरपूर है सामवेद है। इस वेद के दो उपनिषद है केन और छान्दोग्य।

उन्होंने कहा कि रास्ते अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन सत्य एक है। सत्य का अनुसंधान करने वाले अलग अलग रास्ते पर चलने वालों को एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपने काम में लगे रहना चाहिए। इसलिए मंजिल को देखना चाहिए न कि तरीकों को।

उन्होंने कहा कि इतना बड़ा काम डॉ. दुर्रानी ने किया है कि उसकी सार्थकता इसी में है कि हम इसे पढ़े, समझे और अपने नित्य जीवन में अंगीकार करें।

इस अवसर पर डॉ. इकबाल दुर्रानी ने कहा कि दारा शिकोह की हत्या के तकरीबन चार सौ साल बाद पहली बार सामवेद का हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया गया है, और आज लाल किला के प्रांगण में इसका विमोचन हो रहा है। यह औरंगजेब की हार है, उसकी सोच की हार है। उस सोच की जिसकी वजह से दाराशिकोह का गरदन कटा था।

डॉ. इकबाल दुर्रानी ने इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दरख्वास्त करते हुए कहा कि वह उनके सामने अभी नहीं है लेकिन उनकी आवाज यदि प्रधानमंत्री तक जा रही है तो निश्चिततौर पर वह चाहेंगे कि इस काम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके गले में एक माला डाल दे, ताकि दारा शिकोह की परंपरा को आगे बढ़ाया जा सके।

स्वामी ज्ञानेंद्र जी ने इस मौके पर कहा कि डॉ. इकबाली दुर्रानी का काम राष्ट्र गौरव के लिए एक अनुठी प्रेरणा बनेगा। इस दौरान फिल्म सुनील शेट्ठी, भोजपुरी फिल्म अभिनेता व सांसद मनोज तिवारी, पंजाबी गायक हंस राज हंस, अभिनेता गजेंद्र सिंह, अभिनेत्री जया प्रदा सहित फिल्म और सियासत से जुड़ी कई नामचीन हस्तियां मौजूद थी। सभी को सामवेद की प्रतियां भी भी दी गयी।